18 जनवरी 2010

आज का दिन बड़े तेज़ बुख़ार के कारण पलंग पर पड़े हुए बीत रहा है। सोचने के अलावा और कुछ कर सकने की शक्ति दिन भर नहीं रही। जब इंसान बीमार होता है, असहाय होता है तो उसे सहायता के साथ-साथ सहानुभूति की भी ज़रूरत होती है; परन्तु आजकल की दौड़-धूप भरी ज़िन्दगी में सब कुछ कह कर मांगना पड़ता है -इंसान में से संवेदनशीलता मिटती जा रही है। किसी को किसी ख़बर नहीं रहती। लेकिन ईश्वर ने माँ को ना जाने कैसे बनाया है कि प्रेम, करुणा और संवेदना उसमें कूट-कूट कर भरी है। माँ से कुछ मांगना नहीं पड़ता। वह संतान की दुख-तकलीफ़ स्वयं ही जान जाती है। पता नहीं कैसे। कितना भी छिपाओ, माँ को पता चल ही जाता है।

कोई अदृश्य धागा है जो माँ को संतान से बांधता है।

1 comments:

January 18, 2010 at 9:45 PM  

इसीलिए तो माँ की ममता के आगे कुछ नहीं टिकता.


उसके जैसा कोई नहीं.

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