लेखक: ध्रुवभारत
12 जनवरी 2010, मंगलवार, 5:30 सांय
ज़िद ना करो
मुझे बिखर जाने दो
इतनी दरारें पड़ चुकी हैं
मुझे एक बार तो टूट कर
बिखरना ही होगा
तुम ज़िद ना करो
कि मुझे संवार लोगी
प्यार भरा तुम्हारा
एक लफ़्ज़ भी
अकेलेपन से बंधे
टूटे हुए मन से
सहा ना जाएगा
मारे खुशी के
साज़े-धड़कन ही
थम जाएगा

नहीं, तुम यूं ना
मुझे सहारा देने की बातें करो
मत कहो कि दुख मेरे
तुम्हारे हैं
मुझसे कुछ मत कहो
बस, ज़रा छू दो मुझे
कि मैं टूट जाऊं
तुम्हारी छुअन
अकेलेपन के बंधन को तोड़ देगी
और मैं आंसू की लड़ियों-सा
बिखर जाऊंगा

फिर अगर चाहो तो
समेट लेना
मेरे बिखरे हुए टुकड़ों को
और अपने प्यार से
इन्हें फिर जोड़ना
मुझे यकीं है
तुम्हारा प्यार
मुझे एक नई ज़िन्दगी देगा
और देगा एक मन
जो टूटा हुआ नहीं होगा

लेकिन, अभी
तुम ज़िद ना करो...

2 comments:

January 13, 2010 at 5:25 AM  

बेहतरीन अभिव्यक्ति!!

January 13, 2010 at 5:00 PM  

इन उम्मीद है कि टूट कर जुड़ना मुमकिन है
टूटना तब आसान हो जाता है जब पता हो कि कोई है जो सम्हाल सकता है
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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