बीते कुछ दिन से मैं स्वयं के बारे अच्छा अनुभव नहीं कर पा रहा हूँ। एक बेचैनी-सी है मन में; स्वयं का अस्तित्व कुछ गंदा-सा अनुभव हो रहा है। इसके पीछे कारण है कि मैनें कुछ दिन पहले एक निकट मित्र से एक झूठ बोला। यूं तो हर किसी की तरह मैं भी दिन में पाँच-सात झूठ बातें बोल ही देता हूँ लेकिन इस तरह के झूठ हमारे जीवन के सुचारू-रूप से चलने के लिये शायद आवश्यक होते हैं। यहाँ मुझे जिम कैरी की फ़िल्म "लायर लायर" की याद आ रही है। इस फ़िल्म में जिम ने एक सफ़ल वकील का क़िरदार अदा किया है। लेकिन सफ़लता अक्सर व्यक्ति को अपनो से दूर कर देती है और जिम के साथ भी फ़िल्म में ऐसा ही कुछ हुआ। पत्नी से तलाक़ हो जाता है और उसका 7-8 वर्ष का बेटा अपनी माँ के साथ रहने लगता है। एक बार जिम अपने बेटे के जन्मदिन पर भी नहीं पँहुच पाता और कोई झूठा बहाना बना देता है। इस पर बेटा मन ही मन एक दुआ मांगता है कि उसके पिता एक दिन के लिये ना तो झूठ बोल पायें और ना ही अपने मन में आ रही बातों को छुपा पायें। बेटे की दुआ रंग लाती है और एक दिन के लिये जिम के जीवन में क्या-क्या घटता है यह तो फ़िल्म देख कर ही समझा जा सकता है। यह एक अच्छी कॉमेडी फ़िल्म है।
बहरहाल, झूठ तो हम सभी बोलते हैं। झूठ जो किसी को किसी भी तरह का प्रत्यक्ष या परोक्ष नुकसान ना पँहुचाए; ऐसे झूठ मान्य भी होते हैं। हालांकि कई बार ऐसा होता है कि झूठ बोलने वाले व्यक्ति के तर्कानुसार कोई नुकसान नहीं हो रहा होता पर अन्य व्यक्ति को शायद और कुछ नहीं तो मानसिक नुकसान हो रहा हो; यह संभव है। मैनें भी ऐसा ही कुछ सोचा था। मैं अमूमन झूठ नहीं बोलता और जो लोग मेरे निकट हैं उनसे तो कतई नहीं। लेकिन इस बार मैनें सोचा कि मेरा सत्य शायद सामने वाले को दुख पँहुचाएगा और मैनें इस बात का ख़्याल करते हुए झूठ कह दिया। लेकिन उस व्यक्ति को मुझ पर शायद विश्वास नहीं हुआ और उसने मुझसे अपनी झूठ बात दोहराने को कहा तो मैं दूसरी बार झूठ नहीं कह पाया। शायद इसी को मित्रता और प्रेम कहा जाता है। किसी निकट मित्र ने आपसे इस विश्वास के साथ कुछ पूछा कि आप सच कहेंगे; तो आप झूठ कैसे कह सकते हैं?
दूसरी बार में मैनें सच कह दिया। लेकिन इस बात का दुख है कि मैनें पहली बार में झूठ कहा। सच और झूठ के दर्शन की कोई भी बात इस सुभाषितानी के बिना अधूरी रहती है:
सत्यं वदं, प्रियं वदं
न वदं सत्यमप्रियात
यह बात बिल्कुल सही है। पर मेरे विचार कुछ संबंध ऐसे होते हैं जिनमें सत्य चाहे कितना भी कटु क्यों ना हो लेकिन उसे कहना चाहिये। ऐसे रिश्तों में बंधे लोग एक-दूसरे पर इतना अधिक विश्वास करते हैं कि सत्य की कड़वाहट को वे पी जाते हैं और कभी साथ नहीं छोड़ते; रिश्ता नहीं तोड़ते। ऐसे रिश्ते दुर्लभ हैं लेकिन ऐसे रिश्ते हमारे जीवन का हांसिल होते हैं।
मैं कुछ दिन में इस दुख से उबर जाऊंगा लेकिन इस निश्चय के साथ कि मैं अपने निकट के लोगों से झूठ नहीं कहूंगा। ऐसे लोगो से पहले मेरे झूठ कहने की संभावना यदि दस लाख में एक बार थी; तो अब इसे दस करोड़ में एक बार हो जाना चाहिये। सत्य को कहा जाना चाहिये; आपकी ग़लती है तो अपनी ग़लती मानते हुए कहना चाहिये; लेकिन कहना चाहिये क्योंकि सत्य कहना संबंध का सम्मान होता है।
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