लेखक: ध्रुवभारत
14 फ़रवरी 2007
14 फ़रवरी 2007
किसी ख़ामोश शाम को जब मैं
बैठा अकेला क्षितिज की ओर
शून्य में निहार रहा होंऊ
किसी गहरी उदासी में गुम
तब कोई बैठे पास आकर
और पूछे प्यार से
अपनेपन और अधिकार से
"क्या बात है?"
मैं चाहूँ कुछ कहना
किन्तु यदि वाणी न दे साथ
तब कोई मेरे मन को
मेरे चेहरे से पढ़ ले
और थाम ले मेरा हाथ
मुझे बताने को कि मैं
अकेला नहीं हूँ
ज़िन्दगी क्या तुम ऐसा करोगी?
आकर पास बैठोगी?
उदास अकेला होंऊगा
किसी खामोश शाम को जब मैं
बैठा अकेला क्षितिज की ओर
शून्य में निहार रहा होंऊ
किसी गहरी उदासी में गुम
तब कोई बैठे पास आकर
और पूछे प्यार से
अपनेपन और अधिकार से
"क्या बात है?"
मैं चाहूँ कुछ कहना
किन्तु यदि वाणी न दे साथ
तब कोई मेरे मन को
मेरे चेहरे से पढ़ ले
और थाम ले मेरा हाथ
मुझे बताने को कि मैं
अकेला नहीं हूँ
ज़िन्दगी क्या तुम ऐसा करोगी?
आकर पास बैठोगी?
उदास अकेला होंऊगा
किसी खामोश शाम को जब मैं
Labels: कविता जैसा कुछ
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vandana gupta said...
January 16, 2010 at 7:10 PM
waah.........bahut hi sundar bhav......zindagi se zindagi ki baat ki , zindagi se zindagi ne mulaqat ki
..........bahut kuch kah diya aapne.
श्रद्धा जैन said...
January 16, 2010 at 8:40 PM
bahut hi sunder abhivayakti
gahri man ko chhuti hui