अपने एक मित्र को समर्पित मेरी यह रचना बहुत छोटी-सी और साधारण-सी है लेकिन इसकी हर पंक्ति किसी के जीवन का कोई पहलू उजागर करती है। हर पंक्ति एक पूरी कहानी कहती है। केवल समझ सकने वाला एक संवेदनशील हृदय चाहिये। यहाँ जिन बैसाखियों की बात हो रही है वे सांकेतिक बैसाखियाँ (metaphore) नहीं हैं बल्कि मेरे मित्र की असली बैसाखियाँ हैं जो उसके जीवन का हिस्सा हैं।
लेखक: ध्रुवभारत
बैसाखियों पे सधी ज़िन्दगी बैसाखियों से बंधी ज़िन्दगी बैसाखियों पे चली ज़िन्दगी बैसाखियों से बनी ज़िन्दगी बैसाखियों पे खड़ी ज़िन्दगी बैसाखियों से लड़ी ज़िन्दगी बैसाखियों से बड़ी ज़िन्दगी! |
Labels: कविता जैसा कुछ
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Abha Khetarpal said...
April 27, 2010 at 8:59 AM
issay zyada arthpoorn rachna maine aaj tak nahi padhi....