यूं तो यह तीसरी बार था कि 26 जनवरी को प्रतिभा पाटिल ने राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड बतौर राष्ट्रपति देखी। लेकिन मैनें उन्हें सलामी लेते पहली बार इसी गणतंत्र दिवस पर देखा। इससे पहले की दोनों परेड मैं नहीं देख पाया था। हमेशा की तरह परेड भव्य थी और अपने देश की शान दिखाने वाली थी। बहस-मुबाहिसे के शौकीन लोग तपाक से कहेंगे कि कैसी शान? जिधर देखिये गरीबी और भुखमरी का आलम है! फिर आप किस शान की बात कर रहे हैं? मेरा इन लोगो से कहना यही है कि "आप सही हैं"। हमारे देश में भुखमरी, गरीबी, भ्रष्टाचार, अव्यवस्था -सभी कुछ है और बड़े पैमाने पर है। लेकिन हर तरह की बहस का एक समय होता है। क्या हमारे पास एक भी कारण मौजूद नहीं है कि गणतंत्र दिवस जैसे मौके पर हम खुश हो सके? गणतंत्र दिवस खुशी और गर्व का पर्व है। इस दिन अमीर-गरीब सभी को उन अच्छी चीज़ो के बारे में सोचना चाहिये जो हमारे देश ने हमें दी हैं। हमारे देश में जो चीज़े अच्छी नहीं हैं -उनके बारे में बहस और कुछ कर ग़ुज़रने के लिये 364 दिन साल में और होते हैं। हमारा गणतंत्र होना हमारी शान है और हमें इस पर गर्व होना चाहिये।

बहरहाल, मैं प्रतिभा पाटिल की बात कर रहा था। इस वर्ष की परेड (कोहरे में ढकी होने के बावज़ूद) बहुत भव्य थी। मुझे व्यक्तिगत-रूप से यह परेड और भी अधिक गौरवान्वित करने वाली लगी क्योंकि मैनें पहली बार भारत की विशाल सेना को एक महिला के आगे सलामी देते, चटक सैल्यूट लगाते और अपनी तोपों की नाल नीचे करते देखा था। मैं यहाँ पटिल के राष्ट्रपति के रूप में चुनाव और अभी तक उनके प्रदर्शन के बारे में बहस नहीं करना चाहता (हर बहस का एक समय और संदर्भ होता है)। हम सभी जानते हैं कि भारतीय राष्ट्रपति केवल सांकेतिक राष्ट्राध्यक्ष होते हैं। अक्सर वे सत्ताधारी राजनीतिक दलों के हाथों की कठपुतलियाँ भी साबित होते हैं। यह सब अपनी जगह ठीक है। लेकिन एक महिला का विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की राष्ट्राध्यक्ष होना अपने-आप में प्रगति की ओर जाता हुआ एक क़दम है।

मैं नहीं मानता कि भारतीय फ़ौज के सभी जवान और अफ़सर "जैन्टलमैन" की श्रेणी में आते होंगे। ये सभी उच्च कोटी के देशभक्त होते हैं, हम सब इनकी सुरक्षा के साये में अभय जीते हैं -इसमें कोई शक नहीं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि एक व्यक्ति के तौर पर हमारे सभी जवान स्त्रियों के प्रति मन में बराबरी का भाव रखते होंगे। ऐसे में यदि एक महिला उनकी सुप्रीम कमांडर हो सकती है और सारी सेना उनके आगे झुकती है तो यह अपने-आप में हमारे बेहतर होते परिवेश का एक उदाहरण है। गांव-क़स्बों आदि तक इन बदलावों को पहुँचने में समय लगेगा लेकिन शुरुआत तो होती दिख रही है। हमें इस शुरुआत पर गर्व होना चाहिये और इस शुरुआत को आगे बढ़ाने के लिये दृढ़संकल्प होना चाहिये।

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