कभी-कभी ऐसा होता है कि कुछ बातें हज़ारों पन्नें लिख कर भी नहीं कही जा सकती। और कभी-कभी वही बातें कविता की चंद लकीरों पर इस तरह उभर कर आती हैं कि उससे बेहतर-बयानी की कोशिश बेवजह ही साबित हो। मैं ना तो शायर हूँ और ना ही कवि होने का दावा कर सकता हूँ। कविता के नाम पर कूड़ा लिखता हूँ। इस बात का पुरज़ोर अहसास मुझे है। लेकिन जब कभी कविता की लकीरे मन का आईना बन सकती हैं तो मैं कूड़ा लिखने के इस जुर्म को कर ही लेता हूँ। आज भी ऐसा ही है। ज़िन्दगी एक बेहद मुश्किल मोड़ से गुज़र रही है।
लेखक: ध्रुवभारत
04 फ़रवरी 2010
04 फ़रवरी 2010
ज़िन्दगी आंसुओं की क़तारों से ग़ुज़रती हुई सिसकी-सी है हुआ अगर वो तो होगा इन्हीं खारे अश्क़ों के समंदर पार पर ज़िन्दगी इसी नमक़ में गल जाएगी रफ़्ता-रफ़्ता गल कर ही सही मर कर ही सही जैसे भी हो ग़ुज़र भी जाएगी रफ़्ता-रफ़्ता कहिए ज़रा ज़िद कहीं देखी इसकी-सी है? ज़िन्दगी आंसुओं की क़तारों से ग़ुज़रती हुई सिसकी-सी है |
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dipayan said...
February 5, 2010 at 1:04 AM
बहुत खूब ज़िन्दगी के बारे में ।
Udan Tashtari said...
February 5, 2010 at 7:12 AM
बहुत बढ़िया.