मानसिक डिप्रेशन एक बहुत बुरी अवस्था होती है। जहाँ बाकि रोग शरीर को नुकसान पहुँचाते हैं; वहीं डिप्रेशन एक स्वस्थ शरीर के मन से जीने की इच्छा को समाप्त कर देती है। व्यक्ति लड़ना नहीं चाहता। वह भाग जाना चाहता है। घोर अकेलापन महसूस होता है और इस अकेलेपन कोई भी संगी-साथी नहीं दिखाई देता। यह अकेलापन मानो जीवंत होता है; यह साँस लेता है, बढ़ता है और मन में अपनी जड़े जमाता चला जाता है। अपने पंजो से मन को लहू-लुहान कर देता है।
व्यक्ति अगर डेविड है तो डिप्रेशन गोलिआथ की तरह होता है। फ़र्क यह होता है कि इस कहानी में डेविड के अन्दर जीतने का जज़्बा ही नहीं होता। वह हार जाना चाहता है। मर जाना चाहता है और गोलिआथ के लिये ऐसे डेविड को मारना कौन सा मु्श्किल काम होता है।
मानसिक डिप्रेशन एक बेहद बुरी अवस्था है।
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रानीविशाल said...
February 3, 2010 at 8:14 PM
जी, सच कहा आपने अवसाद से बड़ा कोई शत्रु नहीं मनुष्य का ! कहते है की स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ्य मन का वास होता है! किन्तु ये भी उतना ही सच है की एक स्वस्थ्य मन ही शरीर को स्वस्थ रखने की प्रेरणा होता है !! "मन के हारे हार है , मन के जीते जीत" ! अतएव अवसाद से स्वयं को दूर रखना बड़ा आवश्यक है !!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
Udan Tashtari said...
February 4, 2010 at 12:30 AM
ध्यान (मेडीटेशन) इसका उचित समाधान है.