लेखक: ध्रुवभारत
2003 में लिखित
2003 में लिखित
एक बच्चे से पूछो ज़रा ज़ोर से
तुम्हारे हाथ में क्या है?
देख सकोगी छलकते आंसू
उसकी निर्दोष, प्यारी-सी आंखों में
उसकी मुठ्ठी बड़े ज़ोर से होगी बंद
खोलोगी तो कुछ नन्हे कंचे मिलेंगें
मुठ्ठी में बंद उन्ही कंचो की तरह
हम तुम्हे अपने दिल में रखेंगें
जहाँ रेत होगी कुछ साफ़-साफ़
किनारे समन्दर के चलते-चलते तुम
पाओगी, एक सीप आधी दबी-सी रेत में
जैसे वो कुछ छुपाना चाहती हो जग से
तोड़ोगी उस सीप को, तो एक चीख के साथ
कुछ सुन्दर सफ़ेद मोती बिखरेंगे
सीप में छुपे उन मोतियों की तरह
हम तुम्हे अपने दिल में रखेंगे
किसी बहुत दिल-अज़ीज़ को एक शाम
अगर तुम पाओगी बैठे हुए उदास
जब पूछोगी तुम कि क्या ग़म है?
तब भर आएंगी जो आंखे उसकी
तुम थाम लोगी हथेली पर वो आंसू
और तुम्हारे हाथ उन्हें सहेज कर रखेगें
हथेली पर थमे उन आंसुओं की तरह
हम तुम्हे अपने दिल में रखेंगें
सींचा है जिस पेड़ को बरसों से
इस बसंत में खिलेगा उस पर पहला फूल
तुम देख सकोगी उस मुस्कान को
जो माली के चेहरे पर खेल जाएगी
महसूस कर सकोगी तुम उस खुशी को
जिसे माली ने पाया है बरसों के बाद
उसी फूल, उसी मुस्कान, उसी खुशी की तरह
हम तुम्हे अपने दिल में रखेंगें
तुम्हारे हाथ में क्या है?
देख सकोगी छलकते आंसू
उसकी निर्दोष, प्यारी-सी आंखों में
उसकी मुठ्ठी बड़े ज़ोर से होगी बंद
खोलोगी तो कुछ नन्हे कंचे मिलेंगें
मुठ्ठी में बंद उन्ही कंचो की तरह
हम तुम्हे अपने दिल में रखेंगें
जहाँ रेत होगी कुछ साफ़-साफ़
किनारे समन्दर के चलते-चलते तुम
पाओगी, एक सीप आधी दबी-सी रेत में
जैसे वो कुछ छुपाना चाहती हो जग से
तोड़ोगी उस सीप को, तो एक चीख के साथ
कुछ सुन्दर सफ़ेद मोती बिखरेंगे
सीप में छुपे उन मोतियों की तरह
हम तुम्हे अपने दिल में रखेंगे
किसी बहुत दिल-अज़ीज़ को एक शाम
अगर तुम पाओगी बैठे हुए उदास
जब पूछोगी तुम कि क्या ग़म है?
तब भर आएंगी जो आंखे उसकी
तुम थाम लोगी हथेली पर वो आंसू
और तुम्हारे हाथ उन्हें सहेज कर रखेगें
हथेली पर थमे उन आंसुओं की तरह
हम तुम्हे अपने दिल में रखेंगें
सींचा है जिस पेड़ को बरसों से
इस बसंत में खिलेगा उस पर पहला फूल
तुम देख सकोगी उस मुस्कान को
जो माली के चेहरे पर खेल जाएगी
महसूस कर सकोगी तुम उस खुशी को
जिसे माली ने पाया है बरसों के बाद
उसी फूल, उसी मुस्कान, उसी खुशी की तरह
हम तुम्हे अपने दिल में रखेंगें
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