परीक्षित ने कार को अपने ऑफ़िस की पार्किंग में धीरे-धीरे मोड़ा और उसे निर्धारित जगह पर पार्क कर दिया। कुछ मिनट तक वह यूं ही कार में बैठा शून्य में ताकता रहा और फिर अनमना-सा कार से उतर कर ऑफ़िस की मल्टी-स्टोरी बिल्डिंग की ओर बढ़ गया। ऑफ़िस में अपने कमरे तक पँहुचते-पँहुचते वह करीब आधा घंटा लेट हो चुका था। उसका मन कुछ उदास है और वह काम में किसी भी तरह मन नहीं लगा पा रहा है। सहकर्मियों को आधा-अधूरा-सा "गुड मॉर्निंग" कहते हुए उसने अपने कमरे में प्रवेश किया। कोट उतार कर कुर्सी के पीछे लटकाने के बाद वह थका हुआ सा अपनी कुर्सी में धंस गया। सामने फ़ाइलों का बड़ा-सा ढेर पड़ा उसके ध्यान का इंतज़ार कर रहा था लेकिन परीक्षित का ध्यान जाने कहाँ था।

वह रमोना से कुछ ही महीने पहले मिला था। उस दिन पहली बार जब एक दोस्त के घर पार्टी में उसने रमोना को देखा था तो देखता ही रह गया था। वह खूबसूरत तो थी ही -साथ ही साथ एक सुलझे हुए व्यक्तित्व की स्वामिनी भी थी। प्रोफ़ेशनल फ़ैशन डिज़ाइनर के तौर पर एक जानेमाने ब्रैंड के लिये काम करने वाली रमोना खुले विचारों वाली लड़की थी। उसकी जीवनशैली को हर तरह से आधुनिक कहा जा सकता था। महानगर में एक शानदार फ़्लैट, काले रंग की एक बड़ी चमचमाती कार, डिज़ाइनर कपड़े, अक्सर पार्टीयों में शिरकत, शराब और सिगरेट -ये सब रमोना के जीवन का हिस्सा थे। लेकिन ऐसा नहीं था कि रमोना केवल बाहरी चमक-दमक से भरी एक आधुनिक लड़की थी। वह कुशाग्र और बुद्धिमान थी; कला और पढ़ने-लिखने में भी गहरी रुचि रखती थी। उसे संबंधों पर विश्वास भी था। रमोना के साथ घंटो बाताचीत की जा सकती थी और व्यक्ति बोर नहीं होता था। पार्टी में मुलाकात के बाद से रमोना और परीक्षित अक्सर मिलने लगे थे। जल्द ही वे दोनो अच्छे दोस्त बन गये और फिर उससे भी जल्दी उन्होनें पाया कि वे एक दूसरे से प्रेम करने लगे थे।

परीक्षित पिछले कुछ महीनों से बहुत खुश था। उसकी ज़िन्दगी में जो एक भयानक खालीपन था वह रमोना के आने से भर गया था। जो दिनचर्या उसे पहले बोझल लगती थी अब उसी दिनचर्या में कुछ चीज़ें ऐसी थी जिनका उसे इंतज़ार उसे बेसब्री से रहता था; जैसे कि सुबह उठते ही रमोना के गुड मॉर्निंग वाले एस.एम.एस. का आना, दिन में दो-तीन बार रमोना से फ़ोन पर बातचीत और रात को सोने से पहले भी एक बार ज़रूर बात होना... परीक्षित को लगने लगा था कि अब वह अकेला नहीं है। वह और रमोना एक दूसरे को पसंद करने लगे और और उन्होनें विवाह-सूत्र में बंधने का निर्णय कर लिया था।

परन्तु शीघ्र ही परीक्षित को कभी-कभी लगने लगा कि रमोना शायद उसके उतने निकट नहीं है जितना वह समझता है या चाहता है कि रमोना उसके उतना निकट हो। परीक्षित के मन में यह कोई स्थायी भावना नहीं है; बस कभी-कभार ही उसे ऐसा लगता है। उसे लगता है कि रमोना के लिये ज़िन्दगी में उससे भी अधिक महत्वपूर्ण बहुत-सी चीज़े हैं और उन चीज़ों के कारण रमोना कभी-कभी परीक्षित की उपेक्षा कर देती है।

ऑफ़िस की अपनी कुर्सी पर बैठा आज भी वह उन्हीं चीज़ों के बारे में सोच रहा है। वह जानता है कि रमोना के लिये कैरियर महत्वपूर्ण है... परीक्षित स्वयं भी रमोना के कैरियर में बहुत दिलचस्पी लेता है और उसे आगे बढ़ने में हर संभव सहायता करता है। कैरियर के कारण तो शायद रमोना उसकी उपेक्षा नहीं करेगी। तो फिर क्या ऐसा उसकी जीवनशैली के कारण है?... या फिर अब संसार में संबंध वाकई उतने गहरे नहीं रह गये हैं जितना गहरा परीक्षित उन्हें समझता है और चाहता है कि वे उतने गहरे हों?... या फिर शायद रमोना से उसकी अपेक्षाएँ बहुत अधिक हैं।

"आप किसी को कितना प्यार, सम्मान और देख-रेख देते हैं यह तो आप निश्चित कर सकते हैं; लेकिन कोई आपको यह सब कितना देगा यह सुनिश्चित कर पाना आपके हाथ में नहीं होता", लम्बे सोच-विचार के बाद निष्कर्ष-प्राप्ति पर ली जाने वाली गहरी सांस लेते हुए परीक्षित ने सोचा और फ़ाइलों के ढेर पर सबसे ऊपर रखी फ़ाइल को उठा लिया।

"प्रेम तो देने का नाम है अपेक्षा करने का नहीं", यह सोचते हुए उसने फ़ाइल को पढ़ना शुरु कर दिया। उसके मन में रमोना के लिये प्यार का एक विशाल सागर छलक रहा था।

प्यार किसी को करना लेकिन, कह कर उसे बताना क्या
अपने को अर्पण करना पर, और को अपनाना क्या
त्याग अंक में पले प्रेम शिशु, उन्हें स्वार्थ बताना क्या
देकर हृदय, हृदय पाने की, आशा व्यर्थ लगाना क्या
-- हरिवंशराय बच्चन

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