लकड़ी की एक छोटी-सी खूंटी सड़क की बीचो-बीच गड़ी है और एक नेवला करीब एक मीटर लम्बी, पतली-सी, पुरानी रस्सी से इस खूंटी के साथ बंधा। किसी बेचैनी में नेवला खूंटी के चारों ओर गोल-गोल घूम रहा है मानो अपने लिये कोई काम दिये जाने की खातिर उतावला हो। बड़ी-सी गिलहरी जैसा लगने वाले भूरे रंग के इस जीव की चाल तेज़ और फुर्तीली होती है। वहीं नेवले के पास ही आदमी नाम का एक और जीव खड़ा है। उसने टखनों तक आती तहमद के ऊपर एक मैला गेरुए रंग का कुर्ता पहना है। सर पर एक अजीब-से ढंग से बंधी पगड़ी है। उसके हाथ में एक गोल पिटारी है और वह अपने आस-पास कुछ मीटर की दूरी पर खड़े 8-10 नौजवानों और बच्चों से कह रहा है:
"बाबू साहब, इस पिटारी में एक नाग है। नेवले और नाग का बैर जनम-जनम का बैर है। ये एक दूसरे को देखते ही मारने को दौड़ते हैं। आज आप एक ऐसी लड़ाई देखेंगे जैसी आपने कभी न देखी होगी। एक तरफ़ ये फुर्तीला नेवला है और दूसरी तरफ़ ये भयंकर नाग"
सांप की पिटारी अपनी हथेली पर टिकाये बोलने वाला यह आदमी एक संपेरा है। पिटारी अभी भी बंद है और इसके अंदर किनारे-किनारे एक सांप कुंडली मारे बैठा है। संपेरे ने पिटारी वाला हाथ अपने शरीर से दूर करके पिटारी का ढक्कन धीरे-धीरे ऐसे उठाया जैसे कि सांप बस अभी निकल कर उसे डस लेगा। संपेरे ने ढक्कन हटा कर एक ओर रखी अपनी पोटली पर उछाल दिया। पिटारी खुल गयी है लेकिन कोई सांप बाहर नहीं निकला। संपेरे ने अपने दाहिने हाथ को पिटारी में डाला और "भयंकर नाग" के नाम पर एक छोटा-सा पतला-सा सांप पूंछ से पकड़ कर धीरे-धीरे पिटारी से बाहर निकाला और उसे पूंछ से पकड़ कर हवा में लटका लिया। बल खाता हुआ सांप ऊपर की ओर उठता है और फिर अपने ही वज़न के कारण थक कर फिर नीचे की ओर चला जाता है। सांप को देखकर आस-पास खड़े नवयुवकों में सरसराहट दौड़ जाती है। अब संपेरा फिर से कुछ कह रहा है:
"साहेबान, ये नाग बड़ा खतरनाक है। इसका काटा पानी नहीं मांगता। लेकिन आप लोग डरिये मत और आराम से अपनी-अपनी जगह खड़े रहिये। ये आप लोगो को कुछ नहीं कहेगा। मैनें इसका ज़हर निकाल दिया है और दांत भी तोड़ दिये हैं"
संपेरे की बात सुन कर भी नवयुवक काफ़ी असहज हैं और वे सब दो-तीन फ़ुट और दूर हट जाते हैं। संपेरा अब सांप को ज़मीन पर थोड़ा-सा टिकाता है और रस्सी से बंधा नेवला तुरंत सांप के पास आ धमकता है। सांप नेवले से दूर हटने की कोशिश करता है। संपेरा उसकी पूंछ देता है और उसे पूरा ज़मीन पर गिरा कर स्वयं दूर हट जाता है। सांप की सारी उम्मीदें स्वाहा हो जाती हैं। वह बड़ा शिथिल-सा ज़मीन पर पड़ा हुआ है। अपने "जन्मजात दुश्मन" नेवले को देखकर भी उसके अंदर कोई हरकत नहीं है। उसने अपने को भाग्य के सहारे छोड़ दिया है। नेवला सांप के चारों तरफ़ घूमता है और फिर अचानक उसने बड़ी फुर्ती के साथ सांप के मुंह को अपने पैने दांतो में दबोच लिया। सांप दर्द से बिलबिला गया और उसने नेवले के चारों ओर खुद को लपेट कर कुंडली बना ली। लेकिन नेवले को इस कमज़ोर-सी कुंडली के दबाव से कोई असर नहीं पड़ा। उसने सांप के मुंह को काटना शुरु कर दिया। तभी संपेरा आगे बढ़ा। उसने नेवले को दूर हटा कर सांप को पूंछ से पकड़ कर फिर हवा में उठा लिया और सबको उसे दिखा-दिखा कर उसके ज़ख़्म की नुमाइश करने लगा। नेवला नीचे से कूद-कूद कर हवा में उठे हुए सांप तक पँहुचने की कोशिश में लगा है। नुमाइश के बाद संपेरे ने सांप को फिर से ज़मीन पर रख दिया। ज़मीन पर आते ही सांप ने जितना हो सकता था उतनी तेज़ी से भागना शुरु किया। नेवला उसके पीछे दौड़ा लेकिन इससे पहले कि वह सांप को पकड़ पाता उसके गले में बंधी रस्सी तन गयी और वह आगे ना बढ़ सका। सांप बस एक सेकेंड के रहते हुए नेवले की पंहुच से बाहर निकल गया। नेवले ने ज़ोर लगाया लेकिन रस्सी से ना छूट सका। सांप बच गया था और तेज़ी से दूर भाग रहा था। पर तभी संपेरा आगे बढ़ा और उसने दूर जाते सांप को फिर से पूंछ पकड़ कर उठा लिया और उसे वापस नेवले के दायरे में लाकर ज़मीन पर रख दिया। नेवले ने तुरंत ही सांप का मुंह फिर से दबोच लिया और उसे काटने लगा। असहाय सांप तड़पने और बल खाने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहा था। आस-पास घेरा बना कर खड़े युवक इस "लड़ाई" का आनंद ले रहे थे।
सांप अब बुरी तरह घायल हो चुका है और उसने विरोध करना बिल्कुल छोड़ दिया है। नेवला अपनी मर्ज़ी से उसे जहाँ-तहाँ काट रहा है। लेकिन अचानक सांप को फिर से मौका मिला और उसने खुद को नेवले की ज़द के बाहर पाया। इस उम्मीद में कि अब शायद बच जाए घायल सांप में जितनी शक्ति बची थी उसका प्रयोग करते हुए उसने नेवले से दूर रेंगना शुरु किया। इस पर संपेरे ने नेवले की रस्सी खोल दी। बस फिर क्या था नेवला आगे बढा़ और उसने रेंगते हुए सांप को दबोच कर मार डाला। मरा हुआ सांप अब ज़मीन पर उल्टा पड़ा था और उसके शरीर के नीचे का सफ़ेद हिस्सा ऊपर की ओर हो गया था। संपेरा फिर कुछ कह रहा है:
"देखा आपने साहब, कैसी भयंकर लड़ाई हुई! यह नाग बड़ा ही भयंकर था लेकिन इस नेवले ने लम्बी लड़ाई के बाद आखिर जीत हांसिल कर ही ली। नाग हार गया और मारा गया"
आस-पास खड़े युवकों के चेहरे खिले हुए थे। उन्हें ऐसा लग रहा था की "भयंकरता" हार गयी थी। संपेरे ने सभी युवकों से पैसे इकठ्ठे करने शुरु किये, "अरे साहब मैनें एक सांप खोया है। कुछ तो ख्याल कीजिये"। संपेरे ने जितने हो सकते थे उतने पैसे इकठ्ठे किये और अपनी पोटली समेटने लगा। तमाशबीन भी अपनी-अपनी राह चल दिये। संपेरे ने पोटली को कंधे पर टांगा और नेवले की रस्सी एक हाथ में पकड़ ली। दूसरे हाथ से मरे सांप को उठाया और संपेरा चल दिया। मैं कह नहीं सकता कि क्या संपेरा उस मरे सांप को रास्ते में आने वाले किसी कूड़े के ढेर पर फ़ेक देगा या फिर सांप का यह मृत शरीर आज रात नेवले का भोजन बनेगा।
विश्व में कितनी क्रूरता है। जंगलों में यदि ऐसी लड़ाईयाँ हों तो उसे प्रकृति का खेल मानकर रहा जा सकता है। जंगल में भी नेवला ही जीतेगा क्योंकि उसके शरीर पर सांप के ज़हर का अधिक असर नहीं होता। लेकिन कम-से-कम जंगल में अपने जीवन के लिये लड़ने वाले सांप के दांत तो टूटे नहीं होंगे। उसका ज़हर चाहे असर ना करे लेकिन उसके पास तो होगा। और अगर उसे भागने का अवसर मिले तो कोई संपेरा पूंछ पकड़ कर उसे वापस मौत के मुंह में नहीं डालेगा। ज़हर ना सही लेकिन हो सकता है कि अपनी लपेट के बल पर ही सांप नेवले से जीत जाये।
लेकिन यहाँ आदमियों की बस्ती में पहले उसके शरीर को कमज़ोर किया जाता है, उसका ज़हर निकाल लिया जाता है, उसके दांत तोड़ दिये जाते हैं और लड़ाई के दौरान भागने पर उसे वापस नेवले के मुंह में डाल दिया जाता है। फिर इस लड़ाई को "भयंकर" होने का नाम दिया जाता है। अनपढ़ संपेरा तो अपनी आजीविका कमा रहा है -लेकिन ये पढ़े-लिखे युवक इस लड़ाई को किस तरह "भयंकर" मान लेते हैं और किस तरह सांप की बेचारगी पर हँस लेते हैं -मेरे पास इसका कोई उत्तर नहीं है।
मानव समाज अमानवीय और क्रूर होने के साथ-साथ बेवकूफ़ भी है।
Labels: लेख
0 comments:
Post a Comment